आखिर बड़े होने की हमने, कुछ तो कीमत चुकाई होगी - Hindi Poem



किलकारियां छोड़, लफ्जों की कोई बात दोहराई होगी,
हमने घुटनों से उठकर, चलने की करामात दिखाई होगी।
सुनाई होगी हमने भी, कहानी कोई जोड़-तोड़ कर,
आखिर बड़े होने की हमने, कुछ तो कीमत चुकाई होगी।।

हालातों से लड़कर आखिर कोई मुसीबत तो लज्जाई होगी,
दर्द का सैलाब होगा फिर भी, कोई तो उम्मीद मुस्काई होगी।
दी होगी दुहाई हमारे ही किसी कच्चे-पक्के से ख्वाब ने,
आखिर बड़े होने की हमने, कुछ तो कीमत चुकाई होगी।।

कुछ बनने और पाने की कोई बड़ी कसम उठाई होगी,
आग लगा कर सीने में फिर वक्त की घड़ी घुमाई होगी।
कलाई पकड़ कर चंचल चित की, धुन कोई गाई होगी,
आखिर बड़े होने की हमने, कुछ तो कीमत चुकाई होगी।।

हार का घाव होगा मगर विश्वास की दवाई होगी,
और कभी-कभी तो अपनी ही सोच से रुस्वाई होगी।
मालूम थी किसे कि मुकम्मल मंजिल है भी या नहीं,
आखिर बड़े होने की हमने, कुछ तो कीमत चुकाई होगी।।

वैसे अच्छा ही होगा अगर हर आग हमने खुद ही लगाई होगी,
जब तक जल सके जले, फिर थक कर खुद ही बुझाई होगी।
हाँ इतराई होगी हर हार, जब भी गुजरे नाकामी के दौर से,
आखिर बड़े होने की हमने, कुछ तो कीमत चुकाई होगी।।

ख्वाब होंगे किसी राजा से, भले चवन्नी भर कमाई होगी,
और मोहब्ब्बत के शहर में "निर्लज़", चौगुनी महंगाई होगी।
फ़कत बोये होंगे हमने ही ये बीज कभी लड़कपन में, 
आखिर बड़े होने की हमने, कुछ तो कीमत चुकाई होगी।।

और आखिर हो रहे बदनाम तो अफवाह किसी ने तो उड़ाई होगी, 
कि " निर्लज" तुझे जिस पर था भरोसा, महफ़िल उसी ने बुलाई होगी,
कि कोई तो हँसता होगा देख कर, हमारी तबाही का मंज़र,
आखिर बड़े होने की हमने, कुछ तो कीमत चुकाई होगी।।

यूँही हार कर फिर जीतने की उम्मीद जगाई होगी,
हाँ गिरकर, फिर उठे होंगे, हर चोट भुलाई होगी।
और यकीन है कभी तो मेहनत हमारी भी गहरा रंग लाई होगी,
हार कर जीते जब होंगे, हर कोशिश इठलाई होगी।।

हाँ सुनाई हमने भी, आखिर कहानी जोड़-तोड़ कर,
आखिर बड़े होने की हमने, कुछ तो कीमत चुकाई होगी।।•।।
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