प्रेम - निःस्वार्थ हो या स्वार्थपूर्ण हो - LOVE - Be Selfless or Selfish


प्रेम एक ऐसा अध्याय है जिसके बारे में जितना भी लिखो, अपूर्ण एवं अधूरा ही रहेगा। हर किसी ने अपनी एक अलग ही परिभाषा दी है प्रेम की। हम सभी प्रेम के विषय में कितना ही कुछ कविताओं, कहानियों, उपन्यासों, शायरों, भारतीय सिनेमा आदि के माध्यम से सुनते, देखते, पढ़ते आये हैं। हम सभी की अपनी अलग ही मान्यताएँ हैं प्रेम को लेकर, जिसको भी मौका मिले वही अपने शब्दों में प्रेम को परिपूर्ण करने की बेकार कोशिश करते हैं, बेवजह ही दिमाग की अपरिपक्वता की नुमाईश करने लगते हैं। खैर हम भी यहाँ अपने अधूरे ज्ञान से आपको गुमराह नहीं करेंगे।

मुद्दा ये है कि प्रेम निःस्वार्थ हो या प्रेम में स्वार्थ हो ।

कहते हैं कि प्रेम वही है जिसको निःस्वार्थ भाव से किया जाए, प्रेम वह है जिसमें त्याग हो, बिना कुछ प्राप्त करने की उम्मीद से किसी को साफ हृदय से चाह गया हो, जो वासना से ग्रषित न हो, जिसमें आदर हो, मान-सम्मान हो, एक दूसरे के प्रति हीन भावना न हो, विश्वास हो, ईमानदारी हो, मन में किसी भी तरह का मेल न हो इत्यादि इत्यादि।

किंतु इन्हीं तर्को को पुनः ध्यान से, शांति से पढ़िये और समझिये.. अब आप समझ जायेंगे कि मात्र निःस्वार्थ ही एक ऐसा भाव है जो निःस्वार्थ है, उसके अलावा जितने भी तर्क हैं उन सभी में स्वार्थ है फिर यह भाव चाहे कर्ता के हों अथवा कृतार्थ के। प्रेम में त्याग, कोई साफ स्वच्छ हृदय से चाहे, वासना की नज़र से न देखे, मान-सम्मान दे, ईमानदार रहे ऐसा सोचना, ऐसी इच्छा या उम्मीद का होना भी स्वार्थ ही है। और प्रेम में इस तरह से स्वार्थी होना कतई गलत नहीं।

आईये सुनते हैं एक छोटी सी कहानी :

"सुरभि अपने माता-पिता की इकलौती पुत्री थी, इसी वजह से उसे परिवार से भरपूर प्रेम एवं सुख मिला था, हालांकि उसके पिता एक किसान थे किंतु फिर भी माता-पिता अपनी दैनिक एवं आर्थिक परिस्थिति को दरकिनार कर अपने बच्चों की खुशी, उनकी इच्छाओं को पूरी करने की हर संभव कोशिश करते हैं, ठीक वैसे ही पाला था सुरभि को भी उसके माता-पिता ने। सुरभि भी एक अच्छी, पढ़ी-लिखी, संस्कारी लड़की थी। वह घर से दूर एक निजी कम्पनी में काम करती थी। सुंदर, संस्कारी और मेहनती सारे ही गुण थे सुरभि में, उसकी कुशलता एवं व्यवहार से प्रभावित होकर उसे कुछ ही समय में अच्छी तरक्की मिल गयी थी। शहर में अच्छा घर भी ले लिया था उसने, मगर माँ-बाप को अकेले गाँव में छोड़कर सुरभि शहर में नहीं रहना चाहती थी।



समय बीता और सुरभि को साथ ही काम करने वाले नवयुवक किशोर से प्रेम हो गया। वक़्त के साथ साथ प्रेम गहरा होता चला गया। किशोर निरिक्षक के पद पर कार्यरत था और सुरभि से शादी करना चाहता था। दोनो एक दूसरे की भावनाओं को समझते, इज्जत करते थे। किंतु किशोर चंचल स्वभाव का युवक था, जो कितनी ही बार सुरभि की सहेलियों से मौज-मस्ती में छेड़छाड़ कर देता था बस उसकी यही बात सुरभि को खटकती थी। सुरभि कितनी ही बार किशोर को उसके इस स्वभाव के लिए बोल चुकी थी, मगर किशोर सुरभि के इस तरह से टोकने की वजह से उससे किनारा करने लगा था।

किशोर को यकीं था की सुरभि उसके अलावा किसी और से न तो दिल लगायेगी, न ही किशोर से अलग रह पायेगी, बस इसी का फायदा उठाया किशोर ने। वह बहाने बनाने लगा, उसने सुरभि को वक़्त देना कम कर दिया, अब वह सुरभि की खैरियत भी बस कहने भर को पूछता था। सुरभि जब भी किशोर से ये सब शिकायतें करती, किशोर सुरभि से बोलता की वह स्वार्थी है तथा उसका प्रेम भी स्वार्थपूर्ण है। वह प्रेम के बदले ये सब पाने की उम्मीद करती है, किशोर सुरभि से कहता की प्रेम यदि किया जाए तो उसमें किसी भी प्रकार की उम्मीद या मांग नहीं होनी चाहिए, प्रेम निःस्वार्थ होना चाहिए। सुरभि समझ नहीं पा रही थी कि क्या वाकई किशोर की बात सच थी, क्या वाकई सुरभि का प्रेम स्वार्थ से परिपूर्ण है।

आखिर ऐसा क्या गजब मांग लिया था, आखिर ऐसी कौन सी अनुचित उम्मीद की थी सुरभि ने किशोर से - क्या यह किशोर का स्वार्थ नहीं था की सुरभि उसे महज इसलिए कुछ न कहे क्योंकि वह सुरभि से प्रेम करता था, या की ये कि सुरभि उसकी चंचलता पर अंकुश न लगाए। बस इसी कश्मकश में वह टूटने लगी थी, उसका साफ कोमल प्रेम से ओतप्रोत हृदय अब पीड़ा का अनुभव कर रहा था। वह बस इतना चाहती थी की किशोर उसे वक्त दे, महत्व दे, उसकी परवाह करे, उसे प्रेम करे क्योंकि वह खुद भी किशोर के लिए ये सब बिना कहे किये जा रही थी।"

आप उस स्थिति तक स्वार्थी हो सकते हो जब तक की आपके स्वार्थ से किसी को कष्ट न हो, पीड़ा न हो, आप अपने प्रेम में स्वार्थी बनिये, ये आपके प्रेम को और पुख्ता करता है, बस याद रखिये कि आपकी वजह से आपके अपनो को या समाज को किसी भी तरह की हानि न हो। साथ ही जिस प्रकार के स्वार्थ की भावना आप अपने लिए चाहते हैं उसी प्रकार की भावना अपने हृदय में आपके अपनो के लिए भी रखिये। यही सही तरीका है प्रेम में स्वार्थी होने का।

Oldest

4 टिप्पणियाँ

Click here for टिप्पणियाँ

*मास्क, सैनेटाइजर एवं 2 गज की दूरी । रखें कोरोना को दूर, करें सुरक्षा पूरी ।।
*Please follow all guidelines for COVID-19 - BE HEALTHY AND BE SAFE.

*किसी भी सुझाव एवं शिकायत के लिए आप हमें लिख सकते हैं।

Please do not enter any spam link in the comment box... Thank You..!