व्यक्तित्व का विकास - आपकी पहचान | PERSONALITY DEVELOPMENT - Your Identity


हम प्रायः ही समाज में जीवन निर्वाह करते मनुष्यों को देखते आये हैं, उनके बारे में पढ़ते हैं, सुनते हैं, लिखते हैं, विचारते हैं, उनका अवलोकन करते हैं और तय करते हैं उनका व्यक्तित्व उनकी शरीरिक संरचना, आचरण, व्यवहार, गुणों, सोच एवं चरित्र के आधार पर। यह सभी तत्व ही किसी व्यक्ति विशेष के संपूर्ण व्यवहार का प्रतिबिंब हैं। किंतु केवल इतना ही नहीं कितने ही व्यक्तियों का व्यक्तित्व उनकी विफलताओं, असंतोषो, दुःखों, अस्वीकृतियों आदि से भरा होता है। मगर स्मरण रहे समाज में उन्हीं मनुष्यों को प्राथमिकता दी जाती है जिनका  व्यक्तित्व खुशमिजाज हो, सफलताओं से भरा हो और जिनमें स्वीकारने की शक्ति निहित हो। अस्थिरता, परिवर्तन एवं असमानता जीवन का एक आधारभूत नियम है। हर जीव-जन्तु, पेड़-पौधे, पर्वत-पठार, नदी-नाले, मृदा-कंकर आदि सभी में असमानता का गुण होता है किंतु जिस किसी में भी जीवन है उसमें असमानता के साथ-साथ अस्थिरता एवं परिवर्तन का मूल गुण निहित होता है।

अतः जन्म से ही हर व्यक्ति का स्वभाव, सोच, चिंतन, आचरण, परिश्रम, कद-काठी, वाणी आदि में असमानता होती है तथा परिस्थितिओं एवं अवसरों के अनुसार व्यक्ति के इन सभी गुणों में परिवर्तन होता है। व्यक्तित्व के विकास के क्रम में अत्यधिक जटिलता एवं व्यापकता होती है (There is a lot of complexity and scope in the process of personality development.)। बस हमारे इन्हीं गुणों की असमानता का यही गुण हम सभी को एक दूसरे से अलग बनाता है, और यही हमारा व्यक्तित्व है।

देखिये आप को दुनिया वास्तव में किस तरह स्वीकार करती है वह आपकी प्रतिष्ठा (Prestige) है, आप अपने व्यवहार, आचरण, कार्यशैली आदि गुणों के आधार पर जो प्रतीत होते हैं वह आपका व्यक्तित्व (Personality) है, किंतु आपकी वास्तविकता आपका चरित्र (Character) है। अतः आपको अपने चरित्र को उत्तम रखना चाहिए। हम सभी जानते हैं कि हम सभी के अंदर कुछ न कुछ विशिष्ट (unique) होता है जो हमें बाकी सभी से अलग बनाता है, विशेष बनाता है किंतु हम या तो उसे खुद में खोज नहीं पाते अथवा हम कभी खोजने की कोशिश ही नहीं करते, यदि हम अपनी विशिष्टता को खोज लें और अपने व्यक्तित्व को निखार लें तो हम सफलता, प्रसन्नता, सुखों और साकारात्मकता की और अग्रसर हो जायेंगे। (If we discover our uniqueness and refine our personality, then we will move towards success, happiness and positivity).



आईये व्यक्तित्व के प्रकारों पर नजर डालते हैं (Let's look at PERSONALITY types) :

देखिये यूँ तो आपका व्यक्तित्व आपके संपूर्ण व्यवहार की प्रतिच्छाया होती है किंतु फिर भी यह पूर्णतयः मनोविज्ञान का विषय है तो मनोवैज्ञानिकता की दृष्टि से किसी भी व्यक्ति विशेष के व्यक्तिव को तीन वर्गों के आधार पर पृथक किया जाता है :
१. अंतर्मुखी, २. बाह्यमुखी, ३. उभयमुखी

१. अंतर्मुखी (INTROVERT):

अंतर्मुखी व्यक्तित्व उन व्यक्तियों का होता है जो खुद में ही निहित होते हैं। इन्हें समाज से कोई ज्यादा सरोकार नहीं होता, व्यर्थ की बातों, हंसी-मजाक, व्यंगों एवं क्रियाकलापों आदि से दूर रहना इनकी विशेषता है। यह चिंतनशील होते हैं, चिंताग्रस्त और कष्टों के प्रति सजग रहते हैं और साथ ही शांतिप्रिय और एकांतप्रिय भी। अंतर्मुखी व्यक्तित्व के व्यक्ति कर्तव्यनिष्ठ, संवेदनशील होने के साथ ही संकोची स्वभाव के होते हैं जो अपने विचारों को किसी समाज या समूदाय के समक्ष रखने में संकोच करते हैं और सामाजिक व्यवहारकुशलता का अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते चूंकि इन्हें बाह्य जगत की वस्तुओं का अधिक मोह नहीं होता।

२. बहिर्मुखी (EXTROVERT):

ऐसे व्यक्ति जो अपने विचारों की अभिव्यक्ति बड़ी आसानी से करते हैं, जो साहसी और चिंतामुक्त होते हैं। जिनकी रुचि सामाजिक तथ्यों, कार्यों आदि में होती है और जो आशावादी होते हैं ऐसे सभी व्यक्ति बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले होते हैं। ऐसे व्यक्तित्व के व्यक्ति अत्यधिक कार्यकुशल एवं व्यवहारकुशल होते हैं। अपने विचारों को बेझिझक अभिव्यक्त करते करते हैं तथा समूह का हिस्सा होते हैं। यह आत्मचिंतन नहीं करते और समाज के समक्ष अपनी बात और विचार प्रवाह के साथ प्रस्तुत करते हैं।

३. उभयमुखी अथवा विकासोन्मुखी (GROWTH ORIENTED):

जिन व्यक्तियों का व्यक्तित्व मिला-जुला होता है अर्थात जिनमें बाह्यमुखी एवं अंतर्मुखी दोनों ही गुणों का मिश्रण होता है ऐसे व्यक्तित्व को उभयमुखी अथवा विकासोन्मुखी श्रेणि में रखा जाता है। ऐसे व्यक्तित्व वाले असमंजस की स्थिति उत्पन्न करते हैं अतः उनका व्यक्तित्व का सही-सही आंकलन करना कठिन हो जाता है।

यह एक महत्वपूर्ण तथ्य एवं एक अद्वितीय सत्य है कि जीवन के परम आनंद को यदि पाने की अभिलाषा हो तो अपना चरित्र उत्तम बनाना चाहिए। अपने व्यवहार, आचरण, क्रियाकलापों और आत्मचिंतन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना चाहिए, सदैव शांत और शालीन बने रहना चाहिए, अच्छा वक्ता ही नहीं अपितु गुणी श्रोता भी बनना चाहिए। सफलता की यही राह है। और जैसा की हम जान ही चुके हैं कि किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व ही उसके चरित्र की पहचान है। जिस प्रकार एक शिल्पकार पत्थर को तराश कर एक सुंदर मूर्ति का निर्माण करता है उसी प्रकार आपके माता-पिता, शिक्षक, समाज-समूह, आपके जीवन की सम-विषम परिस्थितियां आदि सभी मिलकर आपके व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं और अंततः आपका व्यक्तित्व ही निर्धारित करता है आपका चरित्र। (Ultimately your personality determines your character).

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• आगे आने वाले अध्यायों में हम जानेगें आखिर व्यक्तित्व को कैसे निखारेंगे, संभावनाएं क्या हैं और आवश्यक क्यों है?

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