प्रतिशोध - नैतिकता का अंत | REVENGE - End of Morality



आप सभी कभी न कभी, किसी न किसी से, कहीं न कहीं, कैसे न कैसे पर यकीनन रूठे होंगे, नाराज हुए होंगे, आपको गुस्सा आया होगा, आपने क्रोध किया होगा मगर प्रतिशोध (REVENGE) यूँ ही नहीं लिया जाता। प्रतिशोध को समझने से पहले हमें रूठने, नाराजगी, गुस्से और क्रोध को समझना होगा। अब आप अपने मस्तिस्क पर जोर देंगे तो कुछ को लगेगा सब एक ही है, किंतु कुछ समझ जायेंगे की ये क्रोध का स्तर है। सब एक दूसरे के ही पूरक हैं किंतु सभी की स्थिति, भाव एवं व्यवहार अलग-अलग हैं। देखिये रूठने का भाव सबसे नीचे स्तर का होता है और वजह भी कोई खास बड़ी नहीं होती न उससे किसी को भी कोई बड़ा नुकसान अथवा क्षति हुई होती है, इसलिए हम जरा सी हंसी-मजाक और प्रेम से रूठे हुए को बड़ी आसानी से मना लेते हैं और सब कुछ पूर्णत्या सामान्य हो जाता है, ऐसा अक्सर हमारे अपनों के मध्य होता है। अब बात करें नाराजगी की तो इसका स्तर थोड़ा बढ़ जाता है और इसके होने की वजह भी वाजिब होती है। यह वही स्थिति होती है जब हमारे कर्म और व्यवहार किसी को कष्ट पहुँचाते हैं। किसी की थोड़ी ही सही मगर हानि हुई होती है।

किसी की भी नाराजगी के इस भाव का असर कुछ दिनों या महीनों तक रह सकता है। किंतु यहाँ भी यदि मनाने वाला चाहे तो सरलता से नाराज व्यक्ति या संबंधि को मना लेता है और पुनः सामान्य स्थिति बन जाती है। अब रूठने और नाराजगी वाले स्तर की एक खासियत यह भी है की इन दोनो ही अवस्थाओं में कोई ज्यादा शोर-शराबा या हाथापाई की नौबत नहीं आती, प्रेम बना रहता है और सब कुछ शांत रहता है। लेकिन अगला स्तर थोड़ा गंभीर हो जाता है - और यह है गुस्सा। अब अक्सर अपने सुना होगा, पढ़ा होगा या देखा होगा की मनुष्य गुस्से में गाली-गलौच, हाथापाई और अभद्रता पर उतर आता है। वह बड़े छोटे का मान नहीं रखता और बस तब तक शांत नहीं होता जब तक की उसका गुस्सा शांत न हो जाए, इस पूरी प्रक्रिया के मध्य चाहे कोई कितनी भी क्षमा याचना करे, अथवा उसकी समस्या का निवारण करने और क्षतिपूर्ति करने का आस्वासन दे, वह चुप नहीं होता। किंतु इसका भी एक अच्छा गुण ही कहिये यह है की यह कुछ ही समय के लिए होता है। एक बार गुस्सा शांत हुआ तो फिर पुनः ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होने तक वह सामान्य ही रहते हैं।



ध्यान दीजिये, अब सबसे उच्च स्तर पर आता है - क्रोध। किसी के क्रोध को मापना किसी भी प्रकार संभव नहीं है। क्रोध अपने साथ-साथ द्वेष, घृणा, अपमान, हिंसा और प्रतिशोध जैसे अवगुणों को लेकर आता है। अब किसी के क्रोध के स्तर को मापने के लिए यह जानना जरूरी है की वह अंततः किस तरह का व्यवहार करता है। किसी का क्रोध आजीवन द्वेषपूर्ण व्यवहार करता है तो किसी का अपमानजनक व्यवहार करता है। किसी का घृणात्मक और हिंसक होता है तो किसी का क्रोध प्रतिशोधात्मक भी हो जाता है। और क्रोध का यही स्तर सबसे ज्यादा क्रूर और भयानक होता है। इसमें कोई भी अच्छा गुण नहीं होता, बच्चों-बुजुर्गो-स्त्रियों-बहू-बेटियों किसी के भी मान सम्मान के विषय में नहीं सोचा जाता, बस प्रतिशोध का भाव रहता है। साम-दाम-दंड-भेद कैसे भी करके बदला लेने, बर्बाद करने, निचा दिखाने, अस्तित्व मिटा देने वाली सोच एवं प्रवृत्ति हो जाती है।

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खैर विचारने योग्य यह है कि हमारे क्रोध का स्तर कितना उचित है। क्या वाकई हमने उन तमाम गतिविधियों, परिस्थितियों, हर प्रकार की क्षति, विफलताओं, बाधाओं और अशुद्धियों आदि पर गहराई से विचार किया है, क्या वास्तव में जिस प्रकार का क्रोध हमारे अंतर्मन में जन्म ले रहा है वह पूर्णत्या उचित है अथवा हम बस उपरी जाँच पड़ताल के, अधूरी जानकारी के, अपनी अनैतिकता, अशुद्धियों और अवगुणों को किसी अन्य पर थोप कर उसे बेवजह दोषी ठहरा रहे हैं। रूठने और नाराज होने तक कोई समस्या नहीं क्योंकि उस स्तर पर किसी को कोई हानि नहीं होती, किसी के भी मान सम्मान को ठेस नहीं पहुँचती, लेकिन हाँ, फिर भी आप चाहें तो तब भी इन सब बातों पर गहराई से विचार कर सकते हैं। परंतु यदि स्थिति गुस्से और क्रोध के उच्चतम स्तर तक पहुँचती है तो इसका प्रभाव केवल २ व्यक्तियों पर नहीं बल्कि संपूर्ण समुदाय एवं समाज के बड़े भाग पर पड़ता है।

आपका क्रोध आपके साथ-साथ आपके परिवार, प्रतिष्ठा और नैतिकता का भी अंत कर देता है। आप प्रतिशोधवश किसी का भी हृदय नहीं जीत सकते, हाँ आप घृणा, अपमान और जाने कितने ही अवगुण जीत जायेंगे, आप आजीवन ग्लानि और पश्चताप की अग्नि में ज्वलित रहेंगे और कभी सुकून नहीं पाएंगे। अतः आपको अपना हृदय बड़ा करना होगा, अपने अंदर सदाचार, प्रेम, दया और त्याग के भावों को जन्म देना होगा। आपको धैर्य से सुनने, सोचने, विचारने और उचित निर्णय लेने की शक्ति को विकसित करना होगा। जिनसे गलती हो जाए उनकी विवशता और सत्य के तथ्य को जान कर उन्हें क्षमा करना होगा, उन्हें पश्चताप हेतु, गलतियों को सुधारने हेतु पुनः अवसर प्रदान करने होंगे। इस प्रकार आप न केवल उचित न्याय करेंगे बल्कि अपनी नैतिकता, प्रतिष्ठा, व्यवहारकुशलता, कुल और समाज का अंत होने से भी बचायेंगे और साथ ही सभी का हृदय भी जीत जायेंगे।

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