संस्कृत श्लोक - जीवन जीने के मूल्य एवं नीतियाँ | SANSKRIT SHLOKA - Values ​​& Policies of Living



देखिये आम तौर पर सबसे अधिक बोली जाने वाली और समझी जाने वाली हमारी राज-भाषा हिंदी हम सभी को एक दूसरे से जोड़ कर रखने का कार्य करती है। लगभग संपूर्ण भारत में ही हिंदी भाषा को बड़ी सरलता से समझा जा सकता है। हिन्दी भाषा समूचे भारत को एक सूत्र में पिरोकर हमें एक परिवार की भाँति खड़ा करती है, किंतु स्मरण रहे कि हमारे वेद, ग्रंथ, पौराणिक कथाएँ, शास्त्र आदि की रचना हिंदी नहीं बल्कि संस्कृत लिपि में हुई है। अतः आपको संस्कृत को भी विस्मृत होने से बचाना है। भारतीय संस्कृति और धरोहर को संजोने और संरक्षित करने के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान भी आवश्यक है। हाँ, पुरोहित समाज के लोग आपसी वार्तालाप में संस्कृत भाषा का उपयोग करते हैं, किंतु तात्पर्य केवल यह है कि जब आप फारसी, फ्रेंच, जापानी, अंग्रेजी इन भाषाओं को सीखना चाहते हैं तो संस्कृत क्यों नहीं। जबकि संस्कृत भाषा का उच्चारण मस्तिष्क और जिव्ह को उचित रक्त संचार प्रदान करता है। संस्कृत महज भाषा ही नहीं अपितु भारतीय संस्कृति, परंपराओं, वेदों, पुराणों और ज्ञान का प्रतिबिंब है। अब हम आपको संस्कृत तो नहीं सिखा पाएंगे किंतु हाँ संस्कृत के श्लोक और उनके अर्थभाव आपको बहुत कुछ सिखा सकते हैं।
आप में से बहुत से संस्कृत श्लोक पढ़ना, बोलना और लिखना जानते होंगे लेकिन संभव है कि कुछ को शायद पता भी न हो कि श्लोक होते क्या हैं। असल में श्लोक, संस्कृत में कही या रची गयी २ पंक्तियों की वह रचना है, जिनके द्वारा किसी भी प्रकार की कोई बात, नियम या जीवन जीने की नीति कही जाती है। इनका प्रारूप छंद होने के कारण श्लोक में प्रायः गति और लयबद्धता होती है अतः इनका उच्चारण करना एवं इन्हें कंठस्थ करना सरल हो जाता है।

तो चलिए चाणक्य-नीति (Chanakya Neeti) से शुरू करते हैं:

परिचय : देखिये चाणक्य कौन थे? उनका जन्म कहाँ हुआ? उनकी शिक्षा-दीक्षा आदि सभी जानकारी आपको विकिपिडिया पर, या पुस्तकों आदि जगह संक्षिप्त में प्राप्त हो जायेगी किंतु फिर भी आपको सामान्य परिचय देते हुए चलते हैं कि "आचार्य श्री चणक" के शिष्य होने के कारण "चाणक्य" नाम से सुप्रसिद्ध 'विष्णुगुप्त मौर्य' कूटनीति, अर्थनीति एवं राजनीति के महाविद्वान थे जिन्होंने अपने ज्ञान का कुटिलता से सदुपयोग करते हुए जनमानस के कल्याण एवं भारत की एकता और अखण्डता का रचनात्मक निर्माण किया और इसी कारणवश उन्हें कौटिल्य नाम से ख्याति प्राप्त हुई। चाणक्य विश्वप्रसिद्ध तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य भी थे। मौर्य कूटनीति, अर्थनीति एवं राजनीति के महाविद्वान थे जिन्होंने अपने ज्ञान का कुटिलता से सदुपयोग करते हुए जनमानस के कल्याण एवं भारत की एकता और अखण्डता का रचनात्मक निर्माण किया और इसी कारणवश उन्हें 'कौटिल्य' नाम से ख्याति प्राप्त हुई।

चाणक्य ने तक्षशिला विश्वविद्यालय में आचार्य के पद पर रहते हुए जाने कितने ही विद्यार्थियों के जीवन को प्रकाशमान किया, आईये हम भी चाणक्य नीति (Chanakya Neeti) के श्लोकों को समझें और अपने जीवन में उनकी उपयोगिता के महत्व को जाने।

किं जातैर्बहुभिः पुत्रैः शोकसन्तापकारकैः।
वरमेकः कुलावल्भबो यत्र विश्राम्यते कुलम्॥

हिन्दी अनुवाद:
- चाणक्य कहते हैं कि ऐसे अनेकों पुत्रों का, जो केवल शौक और संताप उत्पन्न करते हैं उनके होने का कोई भी लाभ नहीं, श्रेष्ठ पुत्र वह है जो अपने कुल को सहारा दे और जिसके सहारे संपूर्ण कुल विश्राम कर सके, फिर चाहे वह संख्या में केवल एक ही क्यों न हो।
सरल शब्दों में: आजकल जिसको भी देखिये वही अपनी समस्या और शिकायतें लेकर बैठा रहता है, और यही प्रवृत्ति परिवार और कुनबे में शौक, चिंता और पीड़ा का प्रसार करती है, अतः सदैव प्रयत्न कीजिये की आप समस्या नहीं, समाधान दें।

आपदर्थे धनं रक्षेद् दारान् रक्षेद् धनैरपि।
आत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि ॥

हिन्दी अनुवाद:
- कौटिल्य महाराज कहते हैं कि मनुष्य को अपने हितार्थ धन की रक्षा करनी चाहिए ताकि वह विपत्ति के समय काम आ सके। लेकिन धन से अधिक आवश्यक है की धर्मपत्नी की रक्षा की जाए किंतु जब प्रश्न अपनी स्वयं की रक्षा करने का हो तो उस परिस्थिति में धन और धर्मपत्नी दोनों को ही त्यागना पड़े तो, निःसंदेह त्याग देना चाहिए।
सरल शब्दों में: भौतिक संसार केवल तब तक ही आपके साथ है जब तक कि आपके पास त्यागने के लिए कुछ शेष है, जब आपके पास कुछ भी शेष नहीं बचता तो आप किसी योग्य नहीं रह जाते अतः सर्वप्रथम धन, धन से ऊपर पत्नी और सबसे ऊपर सदैव खुद को रखें।

कस्य दोषः कुले नास्ति व्याधिना को न पीडितः।
व्यसनं केन न प्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ॥

हिन्दी अनुवाद:
- चाणक्य प्रश्न करते हुए समझाते हैं कि आखिर कौन है जिसे कुल में दोष नहीं होता? ऐसा कौन है जिसे रोग दुःखी नहीं करते? पीड़ा किसको नहीं मिलती और सुख सदैव किसको प्राप्त होता है? अर्थात किसी न किसी प्रकार की कमी सर्वत्र रहती है और यही कटुक सत्य है।
सरल शब्दों में: हम सभी लालसा करते हैं एक निरोगी जीवन की, पीड़ा और दोषों से मुक्त होने की और हमेसा सुख प्राप्त करने की  किंतु हम भूल जाते हैं कि निरोगी होने का सुख कभी कभार रोगी होने में है, सुख का आनंद दुख की अनुभूति के पश्चात ही मिलता है अतः हमें परिवर्तन के सत्य को स्वीकार कर जीवन का आनंद लेना चाहिए।

अधना धनमिच्छन्ति वाचं चैव चतुष्पदाः।
मानवाः स्वर्गमिच्छन्ति मोक्षमिच्छन्ति देवताः॥

हिन्दी अनुवाद:
- जिस प्रकार, निर्धन मनुष्यों को धन की कामना रहती है और चार पैरों वाले जीव अर्थात पशु बोलने की इच्छा रखते हैं। कौटिल्य कहते हैं कि उसी प्रकार मनुष्य स्वर्ग प्राप्त करना चाहते हैं और स्वर्ग में निवास करने वाले देव मोक्ष पाना चाहते हैं। अतः जिसको जितना प्राप्त है उससे अधिक प्राप्त करने की कामना करते हैं।
सरल शब्दों में: तात्पर्य यह है कि समस्त संसार में जिसको जो भी मिला है वह उसे तुच्छ लगता है और असंतुष्टि बनी रहती है। और यही असंतुष्टि हमारे भीतर और अधिक प्राप्त करने की कामना को बढ़ाती रहती है। अतः शांतिमय जीवन के लिए जो है उसमें संतुष्ट रहना चाहिए।

दरिद्रता धीरयता विराजते कुवस्त्रता स्वच्छतया विराजते।
कदन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीलतया विराजते॥

हिन्दी अनुवाद:
- जीवन निर्वाह की व्यवहार कुशलता को इंगित करते हुए चाणक्य कहते हैं कि यदि धैर्य हो तो निर्धनता भी सुंदर लगने लगती है, यदि साफ और स्वच्छ रहा जाए तो साधारण वस्त्र भी सुसोभित करते हैं, ऐसे ही यदि बासी भोजन को गर्म किया जाए तो वह भी स्वादिष्ट लगता है और यदि स्वभाव में शीतलता और सहजता है तो कुरूपता भी आकर्षक लगने लगती है।
सरल शब्दों में: अर्थात आप चाहे निर्धन हों, आपके पास चाहे बहुमूल्य वस्त्रों का अभाव हो अथवा आप चाहे दिखने में आकर्षक न हों तो भी यदि आप व्यवहारकुशल हैं, खुद को साफ और स्वच्छ रखते हैं और शांत स्वभाव को अपनाते हैं तो आपसे ज्यादा आकर्षक अन्य कोई भी नहीं हो सकता।

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