मौलिक अधिकार - आपकी अचूक शक्तियाँ | FUNDAMENTAL RIGHTS - Your Infallible Powers

देखिये कोई भी स्वतंत्र देश अथवा राज्य उसकी सीमा से नहीं बल्कि उसमें निहित जनता से महानता प्राप्त करता है और किसी भी देश का विकास, उसमें निहित जनता के विकास पर ही संभव है। कोई भी देश अथवा समाज जनसमूह के तीनों प्रारूपों से मिलकर ही बनता है - उच्चतम वर्गीय, मध्यम वर्गीय एवं निम्न वर्गीय। अतः सभी वर्गों को उनके उत्थान एवं विकास के लिए, उनमें एक रूपता और बेहतर सामंजस्य स्थापित करने के लिए किसी भी देश के संविधान द्वारा उस देश के नागरिकों को कुछ मूलभूत समान अधिकार दिये जाते हैं। इन्हीं मूलभूत अथवा आधारभूत अधिकारों को मौलिक अधिकार कहा जाता है। यह अधिकार वास्तव में वह अचूक शक्तियाँ होती हैं जो हमारे उत्थान, हमारे व्यक्तित्व के विकास एवं हमारी स्वतंत्रता की रक्षा करती हैं।


असल में,
वह सभी अधिकार जो स्वतंत्र एवं सामान्य जीवन निर्वाह की सुरक्षा के लिए, आधारभूत एवं मूल सिद्धांतों की रक्षा हेतु अतिआवश्यक मान कर संविधान द्वारा सभी नागरिकों को प्रदान किये हैं, मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) कहलाते हैं।


सरकार एक विशेष परिस्थिति उत्पन्न होने तक अथवा राष्ट्र संकट की स्थिति न बनने तक, इन अधिकारों में कोई हस्तक्षेप और कोई अंकुश नहीं लगा सकती। मौलिक अधिकार केवल न केवल समाज के विकास एवं उत्थान के लिए अतिआवश्यक हैं अपितु किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में भी आधारभूत भूमिका निभाते हैं।

आईये जानते हैं कि किन कारणों से इन अधिकारों को मौलिक अधिकार कहा जाता है - Let's know that for what reasons these rights are called Fundamental Rights:

• सर्वप्रथम इन अधिकारों को देश के संविधान में सम्मिलित किया गया है अतः यदि इन अधिकारों में कोई भी संशोधन अथवा फेर-बदल तब तक संभव नहीं जब तक की संविधान में संशोधन न किया जाए।
• किसी भी नागरिक के जीवन निर्वाह एवं मूल सिद्धांतों का विकास इन्हीं अधिकारों पर आधारित है अतः इनकी अनुपस्थिति में न केवल समाज बल्कि संपूर्ण राज्य का विकास थम जायेगा।
• यह अधिकार नागरिकों के आत्मविश्वास को सुदृढ़ बनाने के साथ ही, सरकार की निरंकुशता पर अंकुश लगाते हैं तथा कमजोर वर्ग को सुरक्षा प्रदान कर "विधि का शासन" स्थापित करते हैं।
• चूंकि मौलिक अधिकार देश के सभी नागरिकों को समान रूप से प्रदान किये गए हैं तथा इन अधिकारों की सुरक्षा देश की सर्वोच्च न्यायलय करती है अतः किसी के भी द्वारा, किसी भी परिस्थिति में मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। (Under any circumstances, Fundamental Rights cannot be violated by anyone).

आईये जानते हैं कि भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को कौन-कौन से मौलिक अधिकारों प्रदान किये गये हैं - Let's know what Fundamental Rights have been provided to the citizens by the Indian Constitution:

भारतीय संविधान के निर्माण के समय संयोजित संविधान सभा के सदस्यों द्वारा एक अतिमहत्वपूर्ण प्रपत्र तैयार किया गया जिसमें भारत की विविधता, सांस्कृतिक परंपराओं और मूल्यों आदि के आधार पर कुछ मूलभूत अधिकारों को सम्मिलित कर सन् १९४८ में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका द्वारा अंगीकृत मानवीय अधिकारों के प्रपत्र में उल्लेखित अधिकारों में समायोजित किया गया।
फलस्वरूप भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को ७ मौलिक अथवा मूलभूत अधिकार प्राप्त हुए किंतु, ४४वें संशोधन अधिनियम के तहत संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की श्रेणि से हटा कर संपत्ति के अधिकार को कानूनी अधिकार में सम्मिलित कर दिया गया। अतः वर्तमान समय में भारतीय संविधान के अनुसार नागरिकों को केवल ६ मौलिक अधिकारों की प्राप्ति होती है।

भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण एवं विवरण - Classification and description of Fundamental Rights conferred by the Constitution of India:

१. समानता का अधिकार - Right to Equality

संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों में सर्वप्रथम प्राप्त अधिकार "समानता का अधिकार" है, जो भारतीय संविधान के १४वें अनुच्छेद से लेकर १८वें अनुच्छेद तक निहित है। इस अधिकार के अनुसार किसी भी व्यक्ति विशेष के साथ उसके जन्म अथवा जन्मस्थान, वर्ण, लिंग, जाति एवं धर्म आदि के आधार पर भेदभाव निषेध है। संविधान के अनुसार यह अधिकार सभी को रोजगार के संबंध में समान अवसर एवं कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्रदान करता है।

२. स्वतंत्रता का अधिकार - Right to Freedom

हमारे मौलिक अधिकारों में द्वितीय महत्वपूर्ण अधिकार है स्वतंत्रता का अधिकार, जो अनुच्छेद १९ से अनुच्छेद २२ तक संयोजित है। सर्वप्रथम कुछ ही मौलिक स्वतंत्रताएँ सम्मिलित की गयी जिनमें भाषा और विचार अभिव्यक्त करने, अश्त्र-शस्त्र से विहीन संघ बनाने अथवा जनसमूह में जमा होने, निर्विवाद एवं निर्बाध कहीं भी आने-जाने, देश के अंदर कहीं भी निवास करने, जीविका हेतु उपाय एवं व्यवसाय करने की मौलिक स्वतंत्रता के अधिकार सम्मिलित थे। किंतु स्वतंत्रता की व्यापकता को ध्यान में रखते हुए स्वतंत्रता के अधिकार में और भी अधिकारों को राष्ट्र एवं समाज के हित एवं सुरक्षा के आधार पर सम्मिलित किया गया जैसे कि - राष्ट्र की प्रभुता एवं अखंडता, उसकी सुरक्षा  एवं अन्य अंतर्राष्ट्रीय राज्यों से संबंध, शालीनता एवं नैतिकता के अधीन आने वाले अधिकार।
वहीं स्वतंत्रता का अनुचित उपयोग, भारतीय संस्कृति और न्यायलय के नियमों को क्षति पहुँचाने, शांति भंग करने, अपराध करने या अपराध के लिए उकसाने आदि असामाजिक तथ्यों एवं कृत्य आदि पर अंकुश लगा कर, उन्हें स्वतंत्रता प्रदान नहीं की जाती।

३. शोषण के विरुद्ध अधिकार - Right Against Exploitation

संविधान के तहत तीसरा महत्वपूर्ण अधिकार शोषण के विरुद्ध अधिकार है, जिसे अनुच्छेद २३ और अनुच्छेद २४ में रखा गया है। इस अधिकार के अनुसार बेगार, बाल-श्रम और मनुष्यों के व्यापार को गैर-कानूनी एवं दंडनीय अपराध घोषित कर निषेध किया गया है। इस अधिकार के अंतर्गत हरिजन जन समूदाय, स्त्रियों एवं भूमिहीन कृषकों का किसी भी रूप से शोषण करना निषेध है तथा यदि राज्य की ओर से किसी भी सार्वजनिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए कोई भी श्रम योजना लागू होती है तो बिना किसी भेदभाव के ऐसी योजना का लाभ सभी नागरिक समान रूप से ले सकते हैं।

४. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार - Right to Freedom of Religion

भारत संविधान के चौथे महत्वपूर्ण अधिकार के रूप में हमें धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त होता है जो समूचे भारत के नागरिकों को उनकी आस्था एवं श्रद्धा के अनुसार धर्म के पालन एवं चयन की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है। इस अधिकार के उपयोग से कोई भी नागरिक किसी भी धर्म का अनुयायी बन कर, संपूर्ण भारत में अपने धर्म का प्रचार करने के लिए स्वतंत्र है और धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव मान्य नहीं है।

५. संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार - Cultural & Educational Rights

मनुष्य के सर्वांगीण विकास में सहायक संविधान द्वारा प्रदत्त अगला अधिकार अनुच्छेद २९ और ३० में निहित है, जो संस्कृति एवं शिक्षा से संबंधित है। इस अधिकार के तहत देश के हर जन समूदाय को अपनी सांस्कृतिक धरोहरों, संस्कृति एवं भाषा अथवा लिपि को पूर्ण रूप से संरक्षित एवं सुरक्षित रखने का अधिकार है। यदि राज्य द्वारा संचालित किसी भी शैक्षणिक संस्थान में बिना भेदभाव किसी भी जनसमूह को शिक्षा प्राप्त करने का संपूर्ण अधिकार निहित है।

६. संवैधानिक उपचारों का अधिकार - Right to Constitutional Remedies

संविधान द्वारा देश के नागरिकों को प्रदत्त अंतिम और अहम अधिकार संवैधानिक उपचार का अधिकार है। मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन एवं प्रोत्साहन के लिए यह अधिकार प्रदान किया गया है जो अनुच्छेद ३२ में दर्ज है। अधिकारों की व्यवहारिकता बनाये रखने के लिए अन्य सभी मौलिक अधिकारों को संवैधानिक उपचार के अधीन लागू कराया जा सकता है। इसी अधिकार की सहायता से कोई भी नागरिक अपने मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायलय की शरण प्राप्त कर सकता है और न्यायपालिका उन सभी कानूनों एवं आदेशों को अथवा व्यवस्थापिका के कार्यों को अवैधानिक घोषित कर देती है जो मौलिक अधिकारों के विरुद्ध होते हैं और ऐसे न्यायपालिका किसी भी नागरिक के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा कर संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्रदान करती है।

• आने वाले लेखों में हम जानेंगे "प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR)" के विषय में।
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