प्रयास - धैर्य और व्याकुलता के मध्यस्थ । EFFORTS - The Arbiter of Patience & Distraction



देखिये हमारे जीवन से जुड़ा हर मनुष्य या समुदाय यही चाहता है कि हम जैसे-कैसे करके अपने पैरों पर खड़े हो जाएं, इनमें हमारे माता-पिता, सगे-संबंधी, आस-पड़ोस के ताऊ-चाचा और हमारे चहेते यार-दोस्त अक्सर शामिल होते हैं। किंतु हाँ कुछ ईर्ष्यावश तो कुछ स्वार्थवश ऐसा कदापि नहीं चाहते, खैर हम ऐसे मूर्खों की बात भी नहीं करेंगे। स्मरण रहे कि हमारी सफलता केवल हमारी ही न होकर उन सभी की भी होती है जिन्होंने भी हमारा मार्गदर्शन किया है, हमें संसाधनों को एकत्र करने में सहयोग दिया है, हमारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने में हमारी सहायता की है, हमें प्रेरित किया है, हमें निराश नहीं होने दिया और हमारी हार पर हँसे नहीं बस हमारा सहारा बनकर अडिग खड़े रहे और हमें संभाले रखा।
सपने देखना आखिर किसे अच्छा नहीं लगता, मगर फर्क यह है कि कुछ सपने संभवतः सभी देखते हैं परंतु निंद्रा में सोते समय, जो केवल किस्सों में रह जाते हैं और यदा-कदा ही उन पर बात होती है, लेकिन कुछ ऐसे सपने भी होते हैं जो हम सब खुली आँखो से देखते हैं, कुछ बनने, कुछ कर गुजरने का सपना, अपनी पहचान और दुनिया पर छा जाने का सपना और यकीन मानिये जब ये वाले सपने पूरे होते हैं न तो ये किस्सों में रहते नहीं बल्कि खुद अहम किस्से बन जाते हैं जो दीर्घकाल तक कह, पढ़े और सुनाये जाते हैं। सपना हर कोई देखता है फिर चाहे वह कोई भी हो, उसकी कैसी भी स्थिति हो, कोई भी वर्ण हो, गोत्र हो, वर्ग हो या समुदाय हो। हर कोई एक समय खुद की पहचान बनाना चाहता है, दुनिया को अपनी मेहनत और इच्छाशक्ति के दम पर जीतना चाहता है। किंतु सपने यूँ ही सच नहीं होते, सफलता यूँ ही नहीं मिल जाती। हमें इसके लिए अथक प्रयास करने होते हैं, हम हारते हैं लेकिन हर हार से फिर कुछ सीखते हैं और फिर पुनः प्रयास करते हैं तब तक जब तक की हम सफल नहीं हो जाते।

अब आखिर, प्रयास क्या है? What is Effort?
हर कार्य के लिए की गयी क्रिया संभवतः प्रयास नहीं होती। असल में जिन कार्यों का परिणाम अथवा प्रतिफल निश्चित नहीं होता उन्हीं कार्यों के लिए की गयी क्रिया प्रयास कहलाती है। (Action taken for those tasks whose result or reward is not fixed is called effort). या यूँ समझिये कि कर्ता द्वारा किसी क्रिया को किसी कार्य के पूर्ण होने की अवधि तक बार बार दोहराने के क्रम को ही प्रयास कहते हैं। (The sequence of repeating an action by the doer over and over for the duration of the completion of a task is called effort).

किंतु प्रयास की निरंतरता अवस्थाओं पर भी निर्भर करती है। यदि आपके पास प्रयाप्त समय है तो निश्चिंत रहिये आप एवं आपके आस-पास सभी धैर्य रख सकते हैं और आप निरंतर प्रयास कर सकते हैं, परंतु साथ ही यह तभी संभव है यदि आपको नियत कार्यों में सफलता मिल रही हो (If you are getting success in assigned tasks), इसके विपरीत यदि आपके पास अथवा आपके परिजनों या सगे संबंधियों के पास वक्त का अभाव है, और साथ ही आप अपने नियत कार्यों को पूर्ण नहीं कर पाते तो इस अवस्था में हर कोई व्याकुल हो जायेगा (यहाँ समय का तात्पर्य आपकी आयु से है)। आपकी मेहनत और प्रयास सभी कुछ बेकार लगने लगेगा और आप पर दबाव स्थापित होने लगेगा। इसलिए कोई भी सपना देखो या मंजिल का चयन यदि करो तो अपनी दिलचस्पी (Interest) के अनुसार ही करो। दिलचस्पी होगी तभी मेहनत करने में भी मन लगेगा, हार भी गए तो सीख कर फिर कोशिश करने की इच्छाशक्ति जागेगी मगर विश्वास नहीं टूटेगा और साथ ही आपका रुझान आपको आपकी मंजिल की और ले ही जायेगा।


चलिए एक प्रेरणादायक कहानी के माध्यम से समझते हैं (Let's understand through an inspirational story):
बात उन दिनों की है जब प्रतियोगी परीक्षाओं और संस्थानों का एकाएक बोल-बाला हो उठा था। मनोहर भैया जिनकी उम्र २७ के आस पास थी, पास ही अपने परिवार के साथ रहते थे, अभी अच्छी नौकरी के लिए प्रयासरत हैं। यूँ तो नौकरियां मिल भी रही थी मगर प्रदेश में सातवें स्थान पर रहे थे इंटरमीडियेट (senior secendory) की परीक्षा में इसलिए कुछ अच्छा हासिल करना चाहते थे। भैया सिविल सर्विसेस के लिए पिछले ४ वर्ष से प्रयास कर रहे थे। बहुत पढ़ते थे, मेहनती भी बहुत थे, साथ ही एक अच्छे युवा भी, निःशुल्क अध्यापन (Free Tuition) करते थे, सभी जरूरतमंदो के लिए। मनोहर भैया से पढ़ने वाले मेरे ही साथ के २-४ की तो सरकारी महकमे में नौकरी भी लग गयी थी। भैया हमेसा पढाई की बातें करते थे और साथ ही सभी को सकारात्मक सोचने के लिए प्रेरित करते रहते। हर कोई भैया की तारीफ करता मगर सत्य यह भी है कि तारीफों से घर नहीं चलता शायद इसलिए भैया के परिवार वाले उन पर खिजयाये रहते। उनका कहना था कि जो नौकरी मिल रही वह करनी नहीं है और जो मिलनी नहीं है उसके पीछे समय बर्बाद कर रहे हो। उनकी चिंता अपनी जगह सही थी, वह बस यही चाहते थे की भैया सही उम्र में व्यवस्थित हो जाएं। उस वक्त हमें भी उनके परिवार का भैया पर यूँ खिजे-खिजे रहना सही नहीं लगता था। क्योंकि सभी को यकीन था की भैया जो चाहते हैं वह उनकी मेहनत और लगन से प्राप्त कर ही लेंगे, किंतु कौन जानता था कि एक समय उनके परिवार वालों का डर सही साबित होगा।

देखते ही देखते समय तेजी से गुजर रहा था। भैया के पास पढ़ने वाले उन्हीं के सामने से नई नई मोटरसाईकिल ले कर तेज गति से निकल जाते। कल तक जिनकी तारीफ सब करते थे आज वही कानाफूसी करने लगे, जिनके बच्चे भैया से पढ़ कर कुछ बने थे आज वही भैया को नकारा सिद्ध करने में लगे थे। कुछ नहीं करता, इसका मन ही नहीं है, परिवार पर बोझ है, पढ़ता है मगर समर्पित नहीं है, रुचि नहीं है, मोटी बुद्धि है और भी जाने क्या-क्या, हर तरफ बस यही रह गया था। भैया की ७ वर्ष की मेहनत, उनके प्रयास, उनकी शिक्षा सभी कुछ उनकी असफलता और नकारी के समक्ष शून्य हो गया था। कुछ ने तो अपने बच्चों को अच्छी पढाई का हवाला देकर निजी संस्थानों में दाखिला दिला दिया। लगभग-लगभग सभी का विश्वास डगमगा गया था, अब भैया, उनकी मेहनत, उनके प्रयासों, उनके सामर्थ्य और उनके सिविल सर्विसेस के सपने पर सभी को शंका होने लगी थी। केवल भैया ही थे जो इतने प्रयासों के बाद भी हार नहीं मान रहे थे, उन्हें अब भी खुद पर यकीन था और हाँ उनके अलावा कुछ और भी थे।

अब सभी उन्हें सलाह देने लगे थे की जो भी नौकरी मिल रही है वही कर लो या फिर अध्यापन ही कर लो यदि यही करना है तो, परिवार का सोचो, माँ-बाप का सोचो, आयु देखो अब समय नहीं रहा है बेकार की मेहनत करने का, व्यर्थ के प्रयास करने का। आखिर इस तरह की बातें इंसान को कहीं तो तोड़ती है, भैया पर पारिवारिक जिम्मेदारियों का दबाव आ गया था, वह खुद से निराश भी थे मगर खुद से भरोसा नहीं उठने दिया था। बस चुपचाप अपने कमरे या छत पर पढ़ते रहते, थकने लगे थे अपने ही प्रयासों से मगर हार नहीं मानी थी।

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सिविल सर्विसेस की परीक्षा हुई, इम्तिहान भी अच्छा हुआ, मगर अब परिणाम की उत्सुकता उतनी अधिक नहीं होती थी। लगभग ४ महीने बाद नतीजे आये, भैया बाजार में नये निर्मित एक निजी संस्थान में ८००० रुपये मासिक वेतन पर पढ़ा रहे थे। उन्हें शायद याद भी नहीं था की नतीजा आज घोषित होने वाला है। खैर उनके साथ के ही उनके एक मित्र ऋषि, जो पास में ही रहते थे उनके पास उनका अनुक्रमांक था, वह रोते हुए आये। हमारी पूरी मित्रमंडली थी जो पूरी तरह उनके ऐसे रोने पर स्तब्ध थी। पहले तो हमें लगा की परिवार में कुछ अप्रिय घटना घट गयी है लेकिन फिर पूछने पर उन्होंने पूरा वाकया बताया और हमें नगाड़े वाले को लाने को बोलने लगे। २ जन जाकर नगाड़े वाले को ले आये, और तय हुआ कि जो ऋषि भैया ने बताया है उसके बारे में किसी से कुछ न कहा जाए। बस फिर क्या था इंतजार होने लगा, अब जैसे ही मनोहर भैया आये, ऋषि भैया ने उनसे उनकी परीक्षा के परिणाम के बारे में पूछा तो मनोहर भैया के जवाब ने हम सबको हिला कर रख दिया। वो पहले हल्का सा मुस्कुराये फिर हमारी तरफ देखा और फिर थोड़ा संवेदनशील होकर बोले "भाई, क्या परिणाम, छोड़ न यार.. बेकार मेहनत किये यार ऋषि इतने वर्ष, जब नौकरी मिली थी तभी कर लेनी चाहिए थी अब देखो अब भी तो कर ही रहे हैं न।" और फिर हल्का सा मुस्कुरा दिये, मगर निराशा के भाव उनके चेहरे पर किसी घनघोर काले बादल की तरह उमड़ पड़े थे।

खैर असफलताओं ने भैया से इतना गहरा रिश्ता निभाया था की कहना ही क्या। अब जैसे ही मनोहर भैया ने घर के भीतर जाने के लिए कदम बढ़ाया, ऋषि भैया ने रोते हुए उन्हें खींचकर गले लगा लिया। मनोहर भैया समझ नहीं पा रहे थे। इधर हमने भी देर न करते हुए नगाड़े वाले को नगाड़ा बजाने का इशारा किया। देखते ही देखते हुजूम इकट्ठा हो गया। ऋषि भैया ने ही मनोहर भैया को उनकी परीक्षा का परिणाम बताया और उनके सिविल परीक्षा को देशभर में तीसरे पायदान पर रहकर उत्तीर्ण करने के लिए बधाई दी। मनोहर भैया को यकीन ही नहीं हो रहा था जैसे ही ऋषि भैया ने उनकी अंकतालिका दिखाई मनोहर भैया की आँखे खुशी से चमक उठी और जैसे काले गरजते बादलों से जल बरसता है बिल्कुल वैसी ही स्थिति थी मनोहर भैया की। उनकी मेहनत और प्रयास उन्हें उनकी मंजिल तक ले आये थे। मनोहर भैया बहुत रोये, साथ ही उनका परिवार, सारे अड़ोसी-पड़ोसी, और हम सब भी। लेकिन सभी मनोहर भैया की मेहनत, प्रयासों और सफलता से उत्साहित होकर रोये, उनके विश्वास और समर्पण से प्रेरित होकर रोये। आज जिन्हें भी पता चला वही मनोहर भैया को बधाई देते और तारीफ करते नहीं थक रहे थे। उन्होंने आखिरकार अपना लोहा मनवा ही लिया था।

देखिये यदि आपने लक्ष्य निर्धारित कर ही लिया तो समय रहते उस लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास कीजिये, क्योंकि समय का अभाव या यूँ कहें की आपकी बढ़ती आयु आपको निराश कर सकती है, आपका मनोबल तोड़ सकती है और आपको अपने लक्ष्य से समझौता करने के लिए मजबूर कर सकती है, अतः समय रहते अपने लक्ष्य से संबंधित सभी तरह की छोटी से छोटी और महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र कीजिये, खुद के व्यक्तित्व का विकास कीजिये, आपने आचरण एवं सामर्थ्य पर जरूरी काम कीजिये। स्वयं को प्रोत्साहित एवं ऊर्जावान रखने के लिए किताबों और उपदेशों का सहारा लीजिये और सबसे अहम अपनी रुचि का क्षेत्र चुने या यूँ कहिए की खुद से पूछे कि आप किसमें या क्या करने में अच्छे हैं। यदि आप शुरुआती दौर में असफल भी हों तो घबराएं नहीं बल्कि पुनः प्रयास करें। आपकी मेहनत, लगन और निरंतर प्रयास ही आपको सफलता दिलायेंगे।

अन्य लेखों में आप सफलता के लिए जरूरी तथ्यों के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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