बचपन एक चाहत, जवानी एक आफत - Best Hindi Poem














।।  बचपन एक चाहत, जवानी एक आफत  ।।

अच्छे खासे बालक थे, माँ की गोद में बैठे थे,
अकड़ थी, पिताजी की मूछों के ताव से ऐंठे थे..।
बड़े भैया की स्कूल में हुकूमत सी चलती थी,
और बहन के लाड़ प्यार में हर शाम ढलती थी..।।
मगर बचपन की फिर वक्त से बगावत हो रही थी,
जवानी न हुई, मेरी जान को आफत हो रही थी..।।•।।

घर के कामों से तब जी चुरा लेता था,
पर मेलों और त्यौहारों का मज़ा पूरा लेता था..।
चवन्नी और अठन्नी से काम बन जाता था,
रुपया मिलते ही सीना पत्थर सा तन जाता था..।।
आज रुपये हजार हैं पर वो दौर न रहा,
बचपन वाली जिद्द, उस जिद्द का शोर न रहा..।।•।।

हाँ.. तब स्कूली बस्ते का बोझ ज्यादा लगता था,
और यकीनन पाठयक्रम मेरे भोलेपन को ठगता था..।
मगर ये बोझ जिम्मेदारी वाला अब कमर तोड़ देता है,
संभले तो ठीक, वरना फिर जवाब मुंहतोड़ देता है..।।
सुकून से सोने वाला अब तमाम रातों को जगता है,
और बचपन खो ही जाता है जब, जवानी का रोग लगता है..।।•।।

पेंसिल, रबड़ और तख्ती की लड़ाई से,
राजनीति, विज्ञान और भूगोल की पढाई से..।
दूर हो गए आखिर हम बचपन वाले खेलों से,
होली के रंगों से, दशहरे के मेलों से..।।
दिवाली के पटाकों का केवल शोर सुनाई देता है,
और यादों में कहीं दूर बचपन का, कोई छोर दिखाई देता है..।।•।।

न जिक्र था कमाने का, न फिक्र थी बचाने की,
न द्वेष किसी से तिल भर था, न मेहनत थी लुभाने की..।
न इश्क़ वाला रोग था, न ही कोई ऐब था,
आदतें मासूम थी, न कोई फरेब था..।।
फिर करवट ली वक्त ने, बड़ा होता चला गया,
मासूमियत को स्वार्थ में खोता चला गया..।।•।।

पका-पकाया मिलता था तो खाता नहीं था,
अब पका कर रोज ही खाना पड़ता है..।
रोग हो या वियोग हो, शौंक हो या शोक हो,
चाहे टूटा हो शरीर, कमाने जाना पड़ता है..।।
जब छोटा था तो बड़े होने की जिद्द पर अड़ा था,
बड़ा हुआ तो बचपन पीछे, औंधेमुँह पड़ा था..।।•।।

लौटा सके जो कोई तो बस बचपन लौटा दे,
न दे उम्र शतकों की, भले जीवन छोटा दे..।
लौटा दे वो आंगन की भूली-बिसरी यादें,
लौटा दे वो तारों वाली चमचमाती रातें..।।
लौटा दे वो तितलियों के पीछे भागना,
लौटा दे वो जुगनुओं के साथ जागना..।।•।।

लौटा सके तो लौटा दे वो मेले और त्यौहार,
वही माँ की गोद और पिताजी का प्यार..।
लौटा सके जो बचपन की बेफिक्री वाला दौर,
चिड़ियों की चचाहट से होती हुई भोर..।।
नाचना भी लौटा दे, पतंगों को काटकर,
रूठना भी लौटा दे, भाई-बहनों की डाँट पर..।।•।।

लौटा सके तो अच्छा हो बारिश में नहाना भी,
लौटा सके तो अच्छा हो बेसुरा गाना भी..।
लौटा सके तो स्कूल का वही बस्ता लौटा दे,
लौटा सके तो चेहरा वही हँसता लौटा दे..।।
कहना ही क्या अगर यूँही, लौटा सके यार भी,
बचपन की चाहत भी, बचपन का प्यार भी..।।•।।

हाय.. मगर सूखे हुए फूल फिरसे खिल नहीं सकते,
गहरे सागर के किनारे कभी मिल नहीं सकते..।
जल नहीं जलता, हवा को देखा नहीं जाता,
पत्थर आसमान तक कभी फेंका नहीं जाता..।।
नियति हमारी बेबसी पर यूँ ही मुस्कुरायेगी,
और जवानी देखो और कितना नाको चने चबवायेगी..।।•।।

चाहे जो जतन कर लो, चाहे दान रतन कर लो,
चाहे पुण हजार हों या, सत संस्कार हों..।
चाहे तप का ताप धरो, या गूढ़ पश्चताप करो,
चाहे व्रत रखो लाख, चाहे देह कर दो राख..।।
किंतु बीता हुआ वक्त वापस आ नहीं सकता,
ज्यों पश्चिम से पूरब सूरज जा नहीं सकता..।।•।।

होता अगर मुमकिन सब देकर बचपन ले लेता,
वही अकड़पन ले लेता, वही लड़कपन ले लेता..।
ले लेता फिर वही नजारे, बचपन वाले वही इशारे,
ले लेता वही बचपन वाले रंग-बिरंगे मौसम सारे..।।
मगर ये सब काश रहा अब सच से कोशों दूर है,
बचपन जवानी और बुढ़ापा जीवन का दस्तूर है..।।•।।
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