प्रथम सूचना रिपोर्ट - आपका कानूनी अधिकार | FIRST INFORMATION REPORT - Your Legal Right


वर्तमान समय में आपराधिक मामले एवं गतिविधियों के बहुताधिक बढ़ जाने के बाद हर समाचार पत्रों, टेलीविजन चैनलों, रेडियो एवं आम बोल चाल में एक शब्द निरंतर सुनने में आता है पुलिस अथवा FIR। हम सभी जानते हैं की सरकार पुलिस फोर्स की व्यवस्था केवल कानून के संरक्षण हेतु ही नहीं बल्कि हम सभी की सुरक्षा के लिए भी करती है। समाज में कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति विशेष का शोषण न कर सके, किसी की चल अचल संपत्ति को नुकसान न पहुँचा सके तथा किसी की भी जान-माल की हानि न हो इसी संदर्भ में पुलिस को समाज सेवा के लिए मुस्तैद किया जाता है। किंतु यदि फिर भी कोई व्यक्ति या समूह इस तरह के कृत्य/कार्य करता है जिससे किसी अन्य विशेष को क्षति अथवा हानि पहुँचे तो ऐसे

आपराधिक गतिविधियों में संलग्न व्यक्ति या समूह के खिलाफ पुलिस को सर्वप्रथम सूचना देनी होती है, जिसमें शिकायतकर्ता घटना की पूरी जानकारी लिखित अथवा मौखिक तौर पर पुलिस को सुपुर्द करता है, यही होती है FIR-प्रथम सूचना रिपोर्ट
FIR करने या प्रथम सूचना देने का अधिकार सभी के पास निहित है जो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 में समायोजित है(Adjusted in Section 154 of the Code of Criminal Procedure.)

अब, FIR-प्रथम सूचना रिपोर्ट कैसे दर्ज कराएं (How to file FIR-First Information Report):
देखिये FIR दर्ज कराने से पहले यह भी जान लें कि जिस मामले के संबंध में FIR दर्ज करा रहे हैं वह संज्ञेय है अथवा असंज्ञेय। अब हम आपको बताते हुए चलते हैं कि संज्ञेय अपराध के अंतर्गत पुलिस अधिक्षक बिना किसी मजिस्ट्रेट वारंट के अपराधी की गिरफ्तारी कर सकता है किंतु यदि मामला असंज्ञेय अपराध का है तो पुलिस को गिरफ्तारी के लिए आवश्यक रूप से वारंट की जरूरत होती है।
अब यदि मामले का प्रारूप आपके संज्ञान में है तो आप लिखित अथवा मौखिक तौर पर अपनी प्राथमिकी दर्ज करा सकते हैं। किंतु ध्यान दें की जब आप FIR लिखवायें तो उसकी प्रति अवश्य प्राप्त करें। कुछ मामलों में देखा और सुना गया है की पुलिस आपकी FIR/प्राथमिकी को शिकायत के रूप में रोजमर्रा पुस्तिका में लिख लेती है, जिसे रोजनामचा कहते हैं। सुनिश्चित करें की यदि आप FIR लिखवा रहे हैं तो पुलिस अधिक्षक उसमें अपनी और से कोई अतिरिक्त टिप्पणी न जोड़ें और लिखित प्राथमिकी को आपको पढ़कर सुनाएं और साथ ही शिकायतकर्ता को पुलिस थाने/स्टेशन की मोहर एवं हस्ताक्षर की हुई रिपोर्ट की एक प्रति अवश्य दें। यह हर शिकायतकर्ता का अधिकार है।


FIR करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखें (Things to keep in mind while filing FIR):
कानून को देश में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, यदि कोई भी नागरिक कोई अपराध करता है, या किसी भी प्रकार की आपराधिक गतिविधियों में संलग्न पाया जाता है तो अपराध सिद्ध होने की स्थिति में कानून व्यवस्था ऐसे नागरिकों को सजा देकर समाज में शांति, सुरक्षा एवं संतुलन स्थापित करने का कार्य करती है। अतः स्मरण रहे की आप किसी भी विषय में झूठी सूचना देकर पुलिस या कानून को गुमराह न करें, ऐसा करने पर और दोष सिद्ध होने पर आप भी अपराधी की श्रेणि में आ जाते हैं और पुलिस आपके विरुद्ध भी मामला दर्ज कर आपको सजा दे सकती है। इसलिए जिस भी विषय में आप प्राथमिकी दर्ज करा रहे हैं अथवा सूचना दे रहे हैं वह आपकी तरफ से सत्य होनी चाहिए।

इसलिए FIR दर्ज कराते समय निम्न बातों पर ध्यान दें:
• आप किस प्रकार के मामले के विषय में जानकारी दे रहे हैं,
• अपराध किसने किया है अथवा आपको किस पर संदेह है,
• आपराधिक घटना किसके साथ और किस वक्त घटी है,
• वारदात किस जगह पर हुई है, यदि जानकारी है तो अवश्य दें,
• वारदात को किस प्रकार अंजाम दिया गया है, यदि जानकारी है तो अवश्य दें,
• अपराध या वारदात के समय यदि आप स्वयं या अन्य कोई साक्षी मौजूद था तो ब्यौरा दें आदि।

इस प्रकार आप लिखित या मौखिक रूप से FIR दर्ज कर सकते हैं, फिर पुलिस अधिक्षक आपको पुनः संपूर्ण सूचना को पढ़ कर सुनाएंगे और आपको प्राथमिकी की प्रतिलिपि देंगे। इसके लिए किसी भी प्रकार के शपथ पत्र अथवा सेवा शुल्क का कोई प्रावधान नहीं है।

अब यदि आप पुलिस थाने/स्टेशन जाने की अवस्था में नहीं हैं और किसी कारणवश किसी भी मामले में FIR लिखवाना चाहते हैं तो आप इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। जहाँ आपको अपना फोन नंबर एवं ईमेल देना होगा ताकि आपके द्वारा की गयी शिकायत की सूचना प्राप्त होने पर २४ घंटे के अंदर पुलिस अधिक्षक आपसे संपर्क कर पायें और मामले का जायजा ले पायें।

चलिए ये तो रही अपने क्षेत्र की बातें जहाँ आप इस तरह अपनी शिकायत बड़ी आसानी से दर्ज कर सकते हैं किंतु यदि आप किसी दूसरे राज्य या क्षेत्र में हों तो आपको अपनी शिकायत कैसे दर्ज करानी है यह भी जान लीजिये। इस प्रकार की शिकायतों को ZERO FIR की श्रेणि में रखा जाता है।

अब ZERO FIR क्या है? आइये इसके विषय में जानते हैं (What is ZERO FIR? let's know about it):
असल में कानून हमारे सभी अधिकारों की सुरक्षा करता है। ऐसा यदा कदा ही होता है कि किसी पीड़ित को विषम परिस्थितिओं के चलते किसी बाहरी क्षेत्र में पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज करानी पड़ जाये, किंतु अपराध कभी भी, कहीं भी और किसी के भी साथ हो सकता है इसलिए सरकार ने सभी नागरिकों एवं उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए ZERO FIR की सेवा को सुनियोजित किया है। ताकि बिना किसी देरी के शिकायतकर्ता की शिकायत दर्ज हो सके और उसके आधार पर पुलिस कार्यवाही कर सके और इसके उपरांत यदि शिकायतकर्ता चाहे तो ऐसे मामलों को अपने क्षेत्रीय पुलिस थाने में स्थानांतरित करा सकता है।

यदि पुलिस आपकी FIR लिखने से मना कर देती है तो क्या करें? (What to do if the police refuse to write your FIR?):
अब आपको मामले का प्रारूप भी पता है, FIR कैसे और किस प्रकार दर्ज करानी है, उसकी भी जानकारी आपको पता है लेकिन क्या हो यदि पुलिस आपकी शिकायत दर्ज करने इंकार कर दे तो? चलिए इसका समाधान भी आपको देते हैं कि यदि पुलिस आपकी शिकायत दर्ज करने से मना कर दे तो क्या करें।

• सर्वप्रथम आप उन्हें मामले की गंभीरता बताते हुए आग्रह करें की आपकी शिकायत दर्ज की जाए, यदि ऐसा नहीं होता तो-
• उच्च अधिकारियों से इस विषय में शिकायत करें और मामले की जानकारी दें, किंतु यदि इसके बाद भी आपकी बात नहीं सुनी जाती है अथवा शिकायत नहीं लिखी जाती है तो-
• CrPC के सेक्शन १५६ (३) के तहत आपका यह अधिकार है कि आप जिला अथवा मेट्रोपोलिटियन मजिस्ट्रेट के समक्ष अपनी बात रख सकते हैं। मजिस्ट्रेट के पास भी अधिकार प्राप्त होता है कि वह आपकी शिकायत पर मामले के संबंध में पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश दे सके। मगर-
• इसके बावजूद यदि फिर भी अधिकारी आपकी FIR दर्ज नहीं करते हैं या दर्ज करने से मना करते हैं तो सुप्रीम कोर्ट/सर्वोच्च न्यायलय के संज्ञान में मामला आने पर सर्वोच्च न्यायलय के निर्देशानुसार यदि पीड़ित व्यक्ति द्वारा FIR लिखवाने के सप्ताह भर के भीतर प्रारंभिक जाँच पड़ताल पूरी नहीं होती अथवा FIR दर्ज ही नहीं होती तो भी ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सख्त कदम उठाये जा सकते हैं।

आपको सरकार की और से सभी अधिकार इसलिए दिये गए हैं ताकि आप उनका वहन कर सके, जरूरत के समय उनका उचित उपयोग कर राष्ट्र व समाज के साथ साथ अपने भी व्यक्तित्व का विकास कर सकें। इसलिए अपने अधिकारों के विषय में जानिए और दूसरों को भी प्रेरित कीजिये ताकि आवश्यकता पड़ने पर आप उनका उचित उपयोग कर सकें और अपने अधिकारों का हनन होने पर कानूनी व्यवस्था का सहारा ले सकें।

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