मेरा बुढ़ापा - मेरी कहानी | MY OLD AGE - My Story



मेरा बुढ़ापा - मेरी कहानी | MY OLD AGE - My Story

माथे पर शिकन, चेहरे पर झुर्रियाँ.... आँखों में अश्क़ों की, धारा लिए बैठा हूँ,
काँपते से अधर मेरे, सूखी हुई बाजुएँ.... बस गुजरे वक़्त की यादों का, सहारा लिए बैठा हूँ...।
जाने क्यों हताश हूँ, हाँ.. खुद से निराश हूँ.... अनकहा एहसास सा, मुरझाई सी घास सा,
कुछ पाने की होड़ से, जमाने की उस दौड़ से.... थका-हारा मैं अब, किनारा किए बैठा हूँ...।।
काँपते से अधर मेरे, सूखी हुई बाजुएँ.... बस गुजरे वक़्त की यादों का, सहारा लिए बैठा हूँ...।।©।।

याद आती है अब माँ की लोरी, और बचपन की अठखेलियाँ...
पिता की ऊँगली पकड़ कर चलना, दादी-नानी की पहेलियाँ...
ताऊ-चाचो का लाड़ लड़ाना, बुआ का प्यार-दुलार भी...
भाई-बहनों की तकरार भी और, मौसी-मामो का प्यार भी...
दबा हुआ सा किताबों से, पर सज़ा हुआ कुछ ख्वाबों से... यादों की संदूकड़ी में बचपन, प्यारा लिए बैठा हूँ...।।
काँपते से अधर मेरे, सूखी हुई बाजुएँ.... बस गुजरे वक़्त की यादों का, सहारा लिए बैठा हूँ...।।©।।

फिर बड़े होते-होते जीवन, अस्त-व्यस्त हो जाता है...
बस्ता भारी या जिम्मेदारी, तब कुछ समझ नहीं आता है...
दिन भर १०-१२ की परीक्षा, साँझ मस्ती में डूब रही थी....
सुख-दुःख का था खेल निराला, किशोरावस्था भी खूब रही थी...
कुछ पाने की ललक लिए, जग पर छाने की सनक लिए... उम्मीदों का वो चमकता हुआ सा, सितारा लिए बैठा हूँ...।।
काँपते से अधर मेरे, सूखी हुई बाजुएँ.... बस गुजरे वक़्त की यादों का, सहारा लिए बैठा हूँ...।।©।।

मध्यमवर्गीय परिवार में होना, अभिशाप के जैसा था क्या..?
कौड़ी से कोटि की चाहत, घोर पाप के जैसा था क्या..?
मरा असंख्य बार ही 'निर्लज', पर हार कभी न मानी थी...
रोजी-रोटी के चूल्हे में तब तक, मैंने झौंक दी जवानी थी...
किस्मत की मनमानी से, मेहनतकश जवानी से... जो बदलेगा तक़दीर मेरी, इशारा लिए बैठा हूँ...।।
काँपते से अधर मेरे, सूखी हुई बाजुएँ.... बस गुजरे वक़्त की यादों का, सहारा लिए बैठा हूँ...।।©।।

चंद रुपयों की खातिर शायद, जीना भूल गया था मैं...
क्या ऐसे निरस जीवन की खातिर, प्रतिदिन स्कूल गया था मैं...
या कि महंगे वस्त्रों-जूते-चप्पलों की, चाहत मार रही थी तब...
या कि दिखावा, झूठी शान-ओ-शौकत, गरज हुंकार रही थी तब...
पर ईमान के जुनून से, सिकी हुई सुकून से... दो वक़्त की सूखी रोटी का, गुजारा लिए बैठा हूँ...।।
काँपते से अधर मेरे, सूखी हुई बाजुएँ.... बस गुजरे वक़्त की यादों का, सहारा लिए बैठा हूँ...।।©।।

बड़ी जल्दी आन पड़ा था वक़्त, वैवाहिक-सूत्र में बंध जाने का...
अर्थ (धन) की चिंता त्याग वधु को, भुज-भर गले लगाने का...
आंगन में बच्चे खेल रहे थे, वक़्त का पहिया घूम रहा था...
एक बेटा, एक प्यारी बेटी, दोनों का मस्तक चूम रहा था...
संपूर्ण जीवन का अध्याय जुड़ा, यकीनन मैं था खुश बड़ा... वास्तविक जीवन की अनुभूति का, नजारा लिए बैठा हूँ...।।
काँपते से अधर मेरे, सूखी हुई बाजुएँ.... बस गुजरे वक़्त की यादों का, सहारा लिए बैठा हूँ...।।©।।

माँ की तो ममता सब जाने, पिता का त्याग किसे? दिखा...
खर्चे-पर्चे-चर्चे सब में ही, बूंद-बूंद सारा लहू बिका...
मार स्वयं की इच्छा और खुशियाँ, मात-पिता सब साम्भ रहे...
अर्ज़-मर्ज़ और कर्ज़-फर्ज़ से, गिरते बच्चों को थाम रहे...
वास्तविकता का-भर्मों का, मात पिता के कर्मों का... त्याग, समर्पण और प्रेम का, समय सारा लिए बैठा हूँ...।।
काँपते से अधर मेरे, सूखी हुई बाजुएँ.... बस गुजरे वक़्त की यादों का, सहारा लिए बैठा हूँ...।।©।।

बेटी सदा ही शान रही, बेटा भी अभिमान रहा...
दोनों को समतर प्रेम मिले, मात-पिता का ध्यान रहा...
फिर पढ़ा-लिखा कर बेटी का उच्च कुल में विवाह किया...
आगे बढ़ो, किंतु साथ रहो, बेटे से विनत आग्रह किया...
किंतु धन का लोभ भरपूर रहा, बेटा वर्षों तक दूर रहा... नियति के हाथों पड़ा तमाचा, करारा लिए बैठा हूँ...।।
काँपते से अधर मेरे, सूखी हुई बाजुएँ.... बस गुजरे वक़्त की यादों का, सहारा लिए बैठा हूँ...।।©।।

सुख दुःख निरंतर खेल रहे थे, हम दोनों सब कुछ झेल रहे थे...
जन्म-मरण के पथ पर जीवन की, गाड़ी को धकेल रहे थे...
सुबह-शाम हम दोनों की तब, केवल बातें होती थी...
मैं मन ही मन घुटता था, तुम छुप-छुप कर रोती थी...
जब खत्म हुई हर आश थी, तब तुम ही केवल पास थी... और जो हुआ खत्म न प्रेम अनूठा, हमारा लिए बैठा हूँ...।।
काँपते से अधर मेरे, सूखी हुई बाजुएँ.... बस गुजरे वक़्त की यादों का, सहारा लिए बैठा हूँ...।।©।।

अब तो मैं ही तुमसे दूर हूँ, पर जीने को मजबूर हूँ...
हर दुःख सह गया हूँ मैं, तन्हा ही रह गया हूँ मैं...
यादों के कठोर हथौड़े की, चोट निरंतर पड़ती है...
मृत्यु तमाशा देख रही, पल-पल पीड़ा बढ़ती है...
हँसता भी हूँ तो आँखों से अब, आँसू बहने लगते हैं...
लौट आओ या मुझे बुला लो, अक्सर कहने लगते हैं...
अगर ईश्वर कोई पास हो, और सुन रहा अरदास हो, अपने अंतिम शब्दों में नाम, तुम्हारा लिए बैठा हूँ...।।
काँपते से अधर मेरे, सूखी हुई बाजुएँ.... बस गुजरे वक़्त की यादों का, सहारा लिए बैठा हूँ...।।©।।


 











Note::: All images taken from Pixabay.com & freepik.com

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