राही - सफर के शिखर तक । PASSENGER - To The Summit Of The Journey



।।...मैं तो जीवन-पथ का राही हूँ, मुझे बड़ी दूर तक जाना है...।।

है बड़ा कठिन सफर जीवन का, अनचाह! फिर भी पार करूँ..
एकल ही जाना है बैकुंठ, फिर किसका इंतजार धरूं..।
इंतजार नहीं, किंतु प्रेम करूँ क्या.?, प्रीति-विरह के हाथों मरुँ क्या.?
या मरुँ एकल ही जीवन-पथ पर, धूल बनूँ-उड़ूँ नीले नभ पर..।।
किंतु नभ से आगे पहुँचूँ कैसे, आगे सफर अधिक सुहाना है..
मैं तो जीवन-पथ का राही हूँ, मुझे बड़ी दूर तक जाना है...।।•।।


मिले अनगिनत लोग सफर में, अनुभव और अनुभाव भी..
मिली दुखों की तपती धरती, और सुखों की छाँव भी..।
बच्चे-वृद्ध-जवान मिले, कच्चे-पक्के मकान मिले..
कुछ महापुरुषों से भेंट हुई, कुछ के केवल निशान मिले..।।
जीवन-मृत्यु के धागों का, उलझा ताना-बाना है..
मैं तो जीवन-पथ का राही हूँ, मुझे बड़ी दूर तक जाना है...।।•।।


कोई हँसता है-कोई रोता है, किंतु देह-काठ को ढोता है..
कोई क्रोध अगन में भस्म हुआ, कोई मीत-प्रीत का होता है..।
कोई छुपा रहा है दान-धर्म, कोई लज्जित है कुकर्मों पर..
कोई रावण सा होके भी खुश है, कोई थूके है बेशर्मों पर..।।
अब स्वर्ग रहूँ या नरक जलूँ, क्या अंतिम ठौर-ठिकाना है.?
मैं तो जीवन-पथ का राही हूँ, मुझे बड़ी दूर तक जाना है...।।•।।


एक नन्हा सा गुमसुम बालक, मैंने रोक उसे सवाल किया..
खेल-कूद की उम्र अभी तो, किंतु ये कैसा हाल किया..?
भारी मन से, रोते नयन से, मुरझाये से-कोमल तन से..
बोला स्वप्न और किताबों का बोझ, ढोते आ रहा बचपन से..।।
आखिर उसकी पीड़ा-उसका रोग, क्यों लगती मात्र बहाना है.?
मैं तो जीवन-पथ का राही हूँ, मुझे बड़ी दूर तक जाना है...।।•।।


मिली सफर में एक नवयुवती, आँखों से अश्क़ बहाती थी..
कोमल हवा के स्पर्श मात्र से, हाय.! वो काँप सी जाती थी..।
लोक-समाज़ से(द्वारा) लुटि आबरू, रूह तक वेदना भरी हुई थी..
सहमी हुई थी-डरी हुई थी, जिंदा थी किंतु मरी हुई थी..।।
थी मरी आश-मन था निराश, किंतु विश्वास तो मुझे जगाना है..
मैं तो जीवन-पथ का राही हूँ, मुझे बड़ी दूर तक जाना है...।।•।।


फिर झुंड में बैठे युवा मिले, कुछ थके हुए-कुछ जगे हुए..
कुछ बेघर-बेरोजगार थे, कुछ मस्तक कर्म उधार थे..।
कुछ प्रपंचो के ठगे हुए थे, कुछ कर्तव्यों से भगे हुए थे..
कुछ पर मस्ती अपार चढ़ी थी, सम्मुख विपदा तैयार खड़ी थी..।।
क्या हार स्वयं से नवयुवको को यूँ, जीवन व्यर्थ गँवाना है.?
मैं तो जीवन-पथ का राही हूँ, मुझे बड़ी दूर तक जाना है...।।•।।


बढ़ा तनिक तो मिली अभागी, सफेद लबादा पहने थी..
सिंदूर मिटाती, विलाप मचाती, कुछ माँयें-कुछ बहने थी..।
हाथों पे मेहंदी महक रही थी, किंतु चूड़ी-कंगन टूट गए थे..
जो हाथ थामते उसका दामन, वो शरहद पर कहीं छूट गए थे..।।
अब कहो हे ईश्वर! क्या मिली शांति, या की और सताना है..
मैं तो जीवन-पथ का राही हूँ, मुझे बड़ी दूर तक जाना है...।।•।।


रुदन मन से, ज्यों बढ़ा मैं आगे, एक बुजुर्ग मात-पिता मिले..
अंतिम इच्छा बस यही की, पुत्र-कर हमारी चिता जले..।
जले जीवन भर पुत्र-वियोग में, पिता फर्ज में-मात-ममता रोग में..
वृद्धावस्था कट रही शोक में, पुत्र तृप्त है विलास-भोग में..।।
क्या जाने "निर्लज" मात-पिता चरण में, कितना अमूल्य खजाना है..
मैं तो जीवन-पथ का राही हूँ, मुझे बड़ी दूर तक जाना है...।।•।।


किसका कम या किसका ज्यादा, दुःख केवल पीड़ादायक है..
हर सुखों की आड़ में बैठा, दुःख निर्दयी खलनायक है..।
पीड़ा-हार-निराशा से जो, गिरकर सीखे उठना भी..
फिर उठे संभलकर, जो चले निरंतर, वही जीवन का सच्चा नायक है..।।
जन्म के इस भोर से, मृत्यु के उस छोर तक, सुखों-दुखों के रंगों से जीवन का रूप सजाना है..
मैं तो जीवन-पथ का राही हूँ, मुझे बड़ी दूर तक जाना है...।।•।।













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